Hindi poem : भीष्म की दृष्टि पा लेना फिर पहचान नहीं मुश्किल है कौन शिखंडी - Ranjan kumar - Ranjan Kumar Dil ❤ Se - Poetry and Works of Ranjan Kumar

Breaking

Sunday, September 22, 2019

Hindi poem : भीष्म की दृष्टि पा लेना फिर पहचान नहीं मुश्किल है कौन शिखंडी - Ranjan kumar


बाधाओ से लड़ना ही इतिहास है मेरा
सूरज से गलबहियां करते बड़ा हुआ हूँ,
दीपक की थर्राती लौ तुम मुझे न समझो
जल जाओगे तपिश है इतनी मेरे अन्दर !

तपिश सूर्य की और चन्द्रमा की शीतलता
दोनों ही हैं छिपे हुए मेरे अंतर में ,
ये काल प्रवाह करता है निर्णय,किसको क्या दूँ ?
शीतलता या तपिश तुम मुझसे क्या पाओगे !


एक मशाल है सत्य की लेकर फिरता हूँ मै
इसकी आंच को सहन नहीं सब कर पाते हैं,
रुकना झुकना मुझको अब मंजूर नहीं है
जीतूँगा मै हर बाज़ी यह जान रहा हूं!


पर सन्नाटा पसरा है,
इससे जिसको शंका होती है
ये सभी शिखंडी के वंशज हैं,
जिनका बात बात दिल घबराता है !


इतनी फुर्सत रही नहीं जो अब देखूं मैं
मुझसे तेरा तेरा मुझसे क्या नाता है ,
जो आज हजम कर नहीं पा रहे मेरे किस्से
काल यही बनेगे भांड करेंगे यशोगान भी !


जान रहा हूं मै  कि अब क्या क्या होना है
काल चक्र देनेवाला है अपना निर्णय ,
लिखा जा चुका था कब का यह नाटक भी तो
अपनी अदा दिखाने ही तो सब आये थे !


जिसने रोल किया था कभी शिखंडी का
अब अर्जुन का वह रोल निभाता दिख जाता है ,
इसलिए नहीं घबराना ..जो कुछ भी घटता है
पुरानी छाप तो कही न कही दिख जाती है !


अगर पा सको भीष्म की दृष्टि पा लेना..
फिर पहचान नहीं मुश्किल है कौन शिखंडी,
फिर न कभी धोखा होगा पहचान सकोगे
अग्नि-पथ है कौन तुम्हारे साथ चलेगा !!

No comments:

Post a Comment