एक पंक्चर ट्यूब - Ranjan Kumar Dil ❤ Se - Poetry and Works of Ranjan Kumar

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Tuesday, January 15, 2019

एक पंक्चर ट्यूब


जब भी मिलते हैं
सहज नहीं रहते वो ..
फूलने लगते हैं
गुब्बारे की तरह ..!

और फिर मैं
फिर मिलूँगा कह
चल पड़ता हूँ 
वो पिचकने लगते हैं 
पंक्चर ट्यूब की तरह ...! 

अहम ऊनका 
अब होश में आता है,
रोकते हैं आओ न 
कुछ सुनो कुछ सुनाओ.!

अगर रुका 
फिर फूलने लगेगा 
इनके अंदर वही ..
अहम उनका ..!

डरता हूँ कही 
फट न जायें ,
फूल के ज्यादा ...
इसलिये चल पड़ता हूँ ..

वो फिर 
पिचकने लगते हैं ,
पंक्चर ट्यूब की तरह ,
हाँ ,एक पंक्चर ट्यूब ...!!

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